इस लेख में, हम चर्चा करेंगे
- अपर सर्किट लिमिट के बारे में जानकारी
- लोअर सर्किट के बारे में जानकारी
- भारतीय शेयर बाज़ार में सर्किट फिल्टर
- सर्किट फ़िल्टर स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग को कैसे प्रभावित करते हैं?
- सर्किट लिमिट के फायदे
- सर्किट लिमिट के नुकसान
- सर्किट लिमिट के भीतर ट्रेडिंग के सबसे अच्छे तरीके
- सर्किट-लिमिटेड मार्केट में रिस्क मैनेजमेंट और अधिकतम रिटर्न के लिए रणनीति
अपर सर्किट लिमिट के बारे में जानकारी
अपर सर्किट लिमिट, प्राइस बैंड हैं जो एक ट्रेडिंग सत्र के दौरान स्टॉक की कीमत में बढ़ोतरी को सीमित करते हैं। इस तरह के प्रतिबंध से बेवजह आई डिमांड, पैनिक में की गई बाइंग या अन्य फैक्टर के कारण कीमत में तेज़ बढ़ोतरी पर लगाम लगती है। दूसरे शब्दों में, जब स्टॉक की कीमत अपर सर्किट लिमिट तक पहुँचती है, तो सर्किट लिमिट को रीसेट या रिवाइज़ किए जाने तक यह आगे नहीं बढ़ सकती है। आमतौर पर, अपर सर्किट लिमिट को स्टॉक के पिछले ट्रेडिंग डे के क्लोज़िंग प्राइस के परसेंटेज के रूप में तय किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई शेयर किसी दिन पर 100 क्लोज़ होता है, और अपर सर्किट लिमिट 10% पर तय की जाती है, तो अगले दिन स्टॉक अधिकतम 110 रुपये पर ट्रेड कर सकता है।अपर सर्किट लिमिट को प्रभावित करने वाले फैक्टर
कई फैक्टर हैं जो अपर सर्किट लिमिट को प्रभावित करते हैं। उनमें से कुछ का ज़िक्र यहाँ किया गया हैं:- स्टॉक की वोलैटिलिटी: स्टॉक की अपर सर्किट लिमिट को स्टॉक की वोलैटिलिटी के आधार पर एडजस्ट किया जा सकता है।यदि स्टॉक बहुत वोलेटाइल है, तो बहुत अधिक प्राइस मूवमेंट को रोकने के लिए सर्किट लिमिट को कम जा सकता है।
- मार्केट कंडीशन: मार्केट कंडीशन के आधार पर सर्किट लिमिट को एडजस्ट किया जा सकता है।उदाहरण के लिए, बाज़ार में बहुत अधिक वोलैटिलिटी या अनिश्चितता के दौरान सर्किट लिमिट को घटाया जा सकता है ताकि पैनिक सेलिंग या बाइंग को रोका जा सके।
- ट्रेडिंग वॉल्यूम: यदि स्टॉक में शेयर ट्रेडिंगवॉल्यूम बहुत अधिक है, तो प्राइस में होने वाले डिसटॉर्शन को रोकने और फेयर ट्रेडिंग सुनिश्चित करने के लिए सर्किट लिमिट को एडजस्ट किया जा सकता है।
- कॉर्पोरेट एक्शन: मर्जर, एक्विज़िशन या बोनस इशू जैसे कॉर्पोरेट एक्शन स्टॉक की कीमत को प्रभावित कर सकते हैं।इन परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने और बहुत अधिक प्राइस मूवमेंट को रोकने के लिए सर्किट लिमिट को एडजस्ट किया जा सकता है।
- रेगुलेटरी अनिवार्यता: स्टॉक एक्सचेंजों को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) जैसी अथॉरिटी रेगुलेट करती हैं।ये रेगुलेटरी संस्थाएं मार्केट कंडीशन और रुझानों के अपने विश्लेषण के आधार पर कुछ शेयरों या मार्केट सेगमेंट के लिए सर्किट लिमिट तय कर सकते हैं।
अपर सर्किट लिमिट लगाए जाने के उदाहरण
अपर सर्किट लिमिट लगाए जाने का एक उदाहरण है जब सितंबर 2020 में हैप्पिएस्ट माइंड्स टेक्नोलॉजीज के इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) के दौरान सर्किट लगाया गया था। स्टॉक 351 रुपये पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में लिस्ट हुआ था और इसकी अपर सर्किट लिमिट थी 20% । जब शेयर की कीमत बढ़कर 421 रुपये पर पहुँच गई तो अपर सर्किट लिमिट पर पहुँचने के कारण ट्रेड रुक गया। सर्किट लिमिट को रिवाइज़ कर 10% कर दिया गया, जिससे स्टॉक का ट्रेड दायरे में होता रहे।लोअर सर्किट के बारे में जानकारी
लोअर सर्किट लिमिट, अपर सर्किट लिमिट के उलट होती हैं। ये स्टॉक के शेयर ट्रेडिंग के नीचे के प्राइस लेवल हैं जिससे नीचे उस दिन कारोबार नहीं हो सकता। जब कोई स्टॉक अपनी लोअर सर्किट लिमिट तक पहुँचता है, तो ट्रेड को सस्पेंड कर दिया जाता है, और इन्वेस्टर इससे कम कीमत पर सेल ऑर्डर नहीं दे सकते। लोअर सर्किट लिमिट को स्टॉक की कीमत में बहुत तेज़ गिरावट से रोकने और इन्वेस्टर को बड़े नुकसान से बचाने के लिए के लिए तैयार किया गया है।1. लोअर सर्किट क्या है?
जब किसी स्टॉक में लोअर सर्किट लिमिट तक गिरावट हो जाती है, तो इसका मतलब है कि कीमत उस दिन गिरावट के उस स्तर पर पहुंच है जिससे अधिक गिरावट की अनुमति नहीं है। ट्रेडिंग सस्पेंड कर दी गई है, और इन्वेस्टर केवल लोअर सर्किट लिमिट पर या उससे ऊपर के स्टॉक के लिए बाइंग ऑर्डर दे सकते हैं। लोअर सर्किट लिमिट का आकलन स्टॉक के पिछले दिन के क्लोज़िंग प्राइस के परसेंटेज के आधार पर की जाती है और इसका फैसला स्टॉक एक्सचेंज करता है।2. लोअर सर्किट लिमिट को प्रभावित करने वाले फैक्टर
अपर सर्किट लिमिट की तरह, कई फैक्टर लोअर सर्किट लिमिट को प्रभावित कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:- स्टॉक की वोलैटिलिटी: यदि कोई स्टॉक बहुत अधिक वोलेटाइल है, तो इसकी लोअर सर्किट लिमिट कीमत में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए एडजस्ट की जा सकती है।
- मार्केट कंडीशन: बाज़ार के हालत लोअर सर्किट लिमिट को प्रभावित कर सकते हैं।बाज़ार में वोलैटिलिटी के उच्च स्तर या अनिश्चितता के समय में, पैनिक सेलिंग को रोकने के लिए सर्किट लिमिट को और कम किया जा सकता है।
- ट्रेडिंग वॉल्यूम: स्टॉक में शेयर ट्रेडिंग वॉल्यूम बहुत अधिक है, तो प्राइस में होने वाले डिसटॉर्शन हो सकता है और फेयर ट्रेडिंग सुनिश्चित करने के लिए लोअर सर्किट लिमिट सेट की जा सकती है।
- कॉर्पोरेट एक्शन: मर्जर, एक्विज़िशन या बोनस इशू जैसे कॉर्पोरेट एक्शन स्टॉक की कीमत को प्रभावित कर सकते हैं।इन बदलावों के मद्देनज़र और प्राइस मूवमेंट में तेज़ी रोकने के लिए लोअर सर्किट लिमिट को एडजस्ट किया जा सकता है।
- रेगुलेटरी अनिवार्यता: सेबी जैसी रेगुलेटरी संस्थाएं मार्केट कंडीशन और रुझानों के अपने विश्लेषण के आधार पर कुछ शेयरों या मार्केट सेगमेंट के लिए लोअर सर्किट लिमिट तय कर सकते हैं।
3. लोअर सर्किट लिमिट लगाए जाने के उदाहरण
लोअर सर्किट लिमिट आमतौर पर बाज़ार में उतार-चढ़ाव के दौरान लगाई जाती है या फिर जब कोई कंपनी अर्निंग खराब होने की घोषणा करती है। उदाहरण के लिए, मार्च 2020 में, कोविड-19 की महामारी के बीच, कई शेयर अपने लोअर सर्किट लिमिट पर पहुंच गए क्योंकि भारत का शेयर बाज़ार बुरी तरह लुढ़का था। इसी तरह, मई 2020 में, जब यस बैंक की अर्निंग खराब रही तो इसके शेयर की कीमत लोअर सर्किट लिमिट पर पहुंच गई और ट्रेडिंग रोक दी गई।भारतीय शेयर बाज़ार में सर्किट फिल्टर
सर्किट फिल्टर ट्रेडिंग के नियम हैं जिनका उद्देश्य है शेयर बाज़ार में बहुत अधिक प्राइस वोलैटिलिटी को रोकना है। भारत में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) वह रेगुलेटरी संस्था है जो सर्किट फिल्टर को लागू करने का काम करती है।-
सर्किट फिल्टर को लागू करने में सेबी की भूमिका का वर्णन
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सर्किट फिल्टर के प्रकार
- कीमत पर आधारित फ़िल्टर: ये फ़िल्टर तब ट्रिगर होते हैं जब किसी स्टॉक की कीमत पिछले दिन के क्लोज़िंग प्राइस से कुछ निश्चित परसेंटेज बढ़ जाती है या गिर जाती है। स्टॉक के आधार पर परसेंटेज अलग-अलग होता है और आमतौर पर लार्ज-कैप शेयरों के लिए कम होता है।
- वॉल्यूम-आधारित फ़िल्टर: ये फ़िल्टर तब ट्रिगर होते हैं जब स्टॉक का वॉल्यूम इसके औसत दैनिक वॉल्यूम से कुछ निश्चित परसेंटेज से अधिक हो जाती है। इस फ़िल्टर को स्टॉक में अचानक डीमांड में बढ़ने की स्थिति में कीमत में हेराफेरी रोकने और ट्रेडिंग की गतिविधि सीमित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
सर्किट फ़िल्टर स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग को कैसे प्रभावित करते हैं?
सर्किट फिल्टर का स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इनसे बाज़ार में गिरावट और कीमत में हेराफेरी को रोकने में मदद मिलती हैं, लेकिन इनसे लिक्विडिटी को सीमित हो सकती है, वोलैटिलिटी बढ़ सकती है और इन्वेस्टर सेंटिमेंट प्रभावित हो सकता है।- लिक्विडिटी: जब कीमत या वॉल्यूम निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है तो सर्किट फिल्टर शेयर ट्रेडिंग की गतिविधि को सीमित कर लिक्विडिटी को सीमित कर सकते हैं। इससे ट्रेडर के लिए स्टॉक को अपनी इच्छा के मुताबिक कीमत पर खरीदना या बेचना मुश्किल हो सकता है।
- वोलैटिलिटी: सर्किट फिल्टर, ट्रेडिंग गतिविधि को सीमित कर और ऑर्डर का बैकलॉग बनाकर वोलैटिलिटी बढ़ा सकते हैं। जब सर्किट ब्रेकर के बाद ट्रेड फिर से शुरू होता है, तो अचानक ऑर्डर की भरमार हो सकती है, जिससे कीमत में तेज़ बढ़ोतरी या गिरावट हो सकती है।
- इन्वेस्टर सेंटिमेंट: सर्किट फिल्टर अनिश्चितता और घबराहट की भावना पैदा कर इन्वेस्टर सेंटिमेंट को प्रभावित कर सकते हैं। जब ट्रेड रुक जाता है, तो इन्वेस्टर सर्किट ब्रेकर की वजह के बारे में परेशान हो सकते हैं, जिससे ट्रेड फिर से शुरू होने पर बिकवाली हो सकती है।
सर्किट लिमिट के फायदे
- बाज़ार की वोलैटिलिटी को सीमित होती है: जब स्टॉक की कीमत सर्किट लिमिट तक पहुंच जाती है तो ट्रेडिंग को रोककर सर्किट लिमिट स्टॉक की कीमत में बड़ी मूवमेंट को सीमित करने में मदद करती हैं।
- लिक्विडिटी बढ़ती है: सर्किट लिमिट, स्टॉक की कीमत पर बड़े और अचानक हुए ट्रेड के असर को कम कर बाज़ार में लिक्विडिटी में सुधार करती है।
- समान अवसर मिलता है: सर्किट लिमिट यह सुनिश्चित करती हैं कि बाज़ार के सारे पार्टिसिपेंट के पास स्टॉक खरीदने और बेचने के समान अवसर हों, चाहे उनका आकार जो भी हो।
- हेराफेरी रोकने रोकती है: सर्किट लिमिट कुछ बड़े ट्रेडर या इन्वेस्टरों की स्टॉक की कीमत को प्रभावित करने की क्षमता को सीमित कर बाज़ार में हेराफेरी को रोकने में मदद करती है।
- इन्वेस्टर का भरोसा बढ़ाती है: सर्किट लिमिट भारी-भरकम प्राइस मूवमेंट और बाज़ार में हेराफेरी के रिस्क कम कर इन्वेस्टर को सुरक्षा की भावना प्रदान करती हैं।
सर्किट लिमिट के नुकसान
- बाज़ार की अक्षमता का कारण बन सकती है: सर्किट लिमिट, बायर और सेलर की शेयरों को स्वतंत्र रूप से ट्रेड करने की क्षमता को सीमित कर बाज़ार की अक्षमता का कारण बन सकती हैं।
- ट्रेडिंग वॉल्यूम कम हो सकता है: सर्किट लिमिट, ट्रेडर्स की प्राइस मूवमेंट का फायदा उठाने की क्षमता को सीमित कर मार्केट में शेयर ट्रेडिंगवॉल्यूम को कम कर सकती है।
- बाज़ार में अनिश्चितता पैदा हो सकती है: सर्किट लिमिट, ट्रेड और प्राइस डिस्कवरी को सीमित करने के लिए कृत्रिम बाधा तैयार कर बाज़ार अनिश्चितता पैदा कर सकती हैं।
- ट्रेडिंग में देरी हो सकती है: सर्किट लिमिट, ट्रेडिंग को पूरी तरह से रोककर या एक निश्चित अवधि के बाद ही ट्रेडिंग फिर से शुरू कर पूरी प्रक्रिया में देरी कर सकती है।
- एक्सट्रीम मार्केट कंडीशन में प्रभावी न होने की संभावना: संभव है कि बहुत अधिक वोलेटाइल मार्केट कंडीशन में सर्किट लिमिट प्रभावी न हो, क्योंकि उच्च स्तर के प्राइस मूवमेंट को रोकने के लिए इन्हें बहुत बार या बहुत देर से लगाया जा सकता है।
सर्किट लिमिट के भीतर ट्रेडिंग के सबसे अच्छे तरीके
सर्किट लिमिट के भीतर ट्रेड करना इन्वेस्टों के लिए अनूठी चुनौतियां पेश कर सकता है, लेकिन कुछ रणनीतियां रिस्क कम करने और रिटर्न बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। सर्किट लिमिट के भीतर ट्रेडिंग करने के टिप्स- अपनी रिसर्च करें: स्टॉक के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले फंडामेंटल और टेक्निकल फैक्टर को समझने से आपको सर्किट लिमिट के भीतर सोच-समझकर ट्रेडिंग का फैसला करने में मदद मिल सकती है।
- समाचारों और घटनाओं पर नज़र रखें: कंपनी से जुड़े समाचार, उद्योग के घटनाक्रम और मैक्रो इकॉनॉमिक घटनाक्रमों पर नज़र रखें जो स्टॉक की कीमत और सर्किट लिमिट को प्रभावित कर सकते हैं।
- रियलिस्टिक टार्गेट रखें: सर्किट लिमिट के भीतर ट्रेड करते समय, कीमत में सीमित उतार-चढ़ाव को देखते हुए प्रॉफिट और रिस्क मैनेजमेंट के लिए रियलिस्टिक टार्गेट तय करना महत्वपूर्ण है।
- लिमिट ऑर्डर का उपयोग करें: लिमिट ऑर्डर देने से आपको सर्किट लिमिट के भीतर स्पेसिफिक प्राइस पर खरीदने या बेचने में मदद मिल सकती है, जिससे आपको अचानक कीमत में उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान से बचने में मदद मिलती है।
- ट्रेडिंग वॉल्यूम पर नज़र रखें: सर्किट लिमिट के भीतर हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम किसी रुझान या दिशा का संकेत दे सकता है, जो ट्रेडिंग के फैसलों में उपयोगी हो सकता है।
सर्किट-लिमिटेड मार्केट में रिस्क मैनेजमेंट और अधिकतम रिटर्न के लिए रणनीति
- अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाय करें: डायवर्सिफाय किये गए पोर्टफोलियो में इन्वेस्ट करने से सर्किट-लिमिट वाले मार्केट में रिस्क कम करने में मदद मिल सकती है।
- स्टॉप-लॉस ऑर्डर का उपयोग करें: स्टॉप-लॉस ऑर्डर सेट करने से सर्किट-लिमिट वाले मार्केट में किसी तय कीमत पर पहुंचने पर अपने आप होने वाली सेलिंग से नुकसान को सीमित करने में मदद मिल सकती है।
- धैर्य रखें: सर्किट लिमिट से बाज़ार में वोलैटिलिटी और अनिश्चितता बढ़ सकती है, लेकिन लंबे समय में धैर्य से फायदा हो सकता है।
- भावनाओं पर काबू रखें: सर्किट लिमिट से हताशा हो सकती है, जिससे आवेग में आकर फैसले लिए जा सकते हैं।भावनाओं को काबू में रखना और अपने ट्रेडिंग प्लान पर टिके रहना महत्वपूर्ण है।
- प्रोफेशनल गाइडेंस का उपयोग करें: सर्किट लिमिट के भीतर ट्रेड के लिए एक्सपर्ट गाइडेंस के लिए प्रोफेशनल फिनांशियल एडवाइज़र या सैमको जैसे ट्रेडिंग ऐप के साथ संपर्क करें।
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